जाने भगवान शिव के पवित्र 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और फोटो, स्थान की जानकारी

Barah Jyotirling Ke Naam Aur Jagah

12 ज्योतिर्लिंग के नाम और फोटो: आदि योगी कहे जाने वाले भगवान शिव की पूजा और लिंग पूजा का प्रचलन आज से ही नहीं बल्कि सबसे पुरानी सभ्यता सिंधु सभ्यता के जमाने से चला रहा है। इतिहास की माने तो मेलूहा नाम की जगह से भगवान शिव और उनकी लिंग पूजा का प्रचलन शुरू हुआ, जो बाद में वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल से लेकर आज तक चला रहा है।

भगवान भोलेनाथ में आस्था रखने वाले भक्तों के लिए पूरे भारत के कोने-कोने में भगवान शिव के कई मंदिर हैं, जहां भगवान शिव की और शिवलिंग की पूजा होती है। वहीं पूरे देश में केवल 12 ऐसे स्थान हैं, जहां भगवान स्वयं ज्योति पुंज रूप में विद्यमान है। ऐसे स्थान ज्योतिर्लिंग कहे जाते हैं।

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जितना महत्व शिवलिंग पूजा का है, उससे कहीं अधिक महत्व ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का है। ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से प्राणियों के जन्मों जन्म के पाप कट जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जहां-जहां भगवान शिव प्रकट हुए, वहां ज्योतिर्लिंग बन गए। भगवान शिव के भक्तों के लिए 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करना किसी स्वप्न से कम नहीं है।

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इस लेख में बारह ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान (12 jyotirling ke naam), 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे बड़ा ज्योतिर्लिंग कौन सा है आदि के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले हैं।

Table of Contents

ज्योतिर्लिंग का अर्थ

ज्योतिर्लिंग में निहित शब्द ज्योति का अर्थ है चमक और लिंग का अर्थ है प्रतीक यानी भगवान शिव की चमक या आभा का प्रतीक।

पुराणों में वर्णित तथ्यों के अनुसार ज्योतिर्लिंग का अर्थ है व्यापक “ब्रह्म आत्म लिंग” जिसका अर्थ है “व्यापक प्रकाश”।

वास्तव में ज्योति पिंड ही ज्योतिर्लिंग है। पुराणों के अनुसार शिवलिंग के 12 खंड है। शिव पुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योति पिंड या ज्योतिर्लिंग कहा गया है।

ज्योतिर्लिंग का महत्व

भगवान शिव के भक्तों के लिए ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का महत्व बहुत ही बड़ा है। क्योंकि भगवान शिव शिवलिंग रूप में देशभर के कोने-कोने में पूजे जाते हैं लेकिन ज्योतिर्लिंग केवल विशेष 12 स्थानों पर ही स्थित है।

ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग में एक बड़ा अंतर है और वह यह है कि ज्योतिर्लिंग स्वयंभू होते हैं। लेकिन शिवलिंग मानव द्वारा स्थापित भी किए जाते हैं और स्वयंभू भी हो सकते हैं। अर्थात ज्योतिर्लिंग केवल 12 ऐसे विशेष स्थान है, जहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे।

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार किसी व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा तब तक पूरी नहीं होती, जब तक 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन नहीं कर लेते। इन 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने से ना केवल मनोकामना पूरी होती है बल्कि जन्मों-जन्म के पाप भी कट जाते हैं।

इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से आने वाली आपदा चाहे वह मृत्यु ही क्यों ना हो टल जाती है। इसीलिए भगवान शिव को मृत्युंजय कहा जाता है।

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बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम और जगह (Barah Jyotirling Ke Naam Aur Jagah)

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान निम्नलिखित है:

क्र. सं.ज्योतिर्लिंगों के नामजगह
1सोमनाथ ज्योतिर्लिंगसोमनाथ, गुजरात
2मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंगकृष्णा नदी के तट पर, आंध्र प्रदेश
3महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंगउज्जैन, मध्य प्रदेश
4ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंगमांधाता आईलैंड, खंडवा जिला, मध्य प्रदेश
5केदारेश्वर ज्योतिर्लिंगकेदारनाथ, उत्तराखंड
6भीमाशंकर ज्योतिर्लिंगशिराधन गांव, भीम नदी उद्गम स्थल, महाराष्ट्र
7विश्वनाथ ज्योतिर्लिंगकाशी नगर, वाराणसी जनपद, उत्तर प्रदेश
8त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंगगोदावरी नदी के किनारे, नासिक, महाराष्ट्र
9वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंगदेवघर, झारखंड
10नागेश्वर ज्योतिर्लिंगद्वारका धाम, जामनगर जिला, गुजरात
11रामेश्वर ज्योतिर्लिंगरामनाथपुरम जिला, तमिलनाडु
12घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंगदौलताबाद, औरंगाबाद, महाराष्ट्र

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गुजरात

गुजरात राज्य के सोमनाथ में स्थित ज्योतिर्लिंग केवल भारत का ही नहीं बल्कि पूरे विश्व का सबसे प्राचीन ज्योतिर्लिंग माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण चंद्र देव ने करवाया था, जिसका वर्णन ऋग्वेद में मिलता है।

ऐसा माना जाता है कि सोमनाथ के इस मंदिर का निर्माण चंद्रदेव ने सोने से, सूर्य देव ने चांदी से और भगवान कृष्ण ने लकड़ी से करवाया था।

Somnath temple
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गुजरात

यहां पर तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का संगम होता है। कथाओं की मानें तो भगवान श्री कृष्ण यही भालुका तीर्थ से शरीर त्याग कर बैकुंठ का गमन किया था। इस स्थान पर त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्र प्रदेश

आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के बाद दूसरे स्थान पर आता है। यह ज्योतिर्लिंग श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर को दक्षिण का कैलाश पर्वत भी कहा जाता है।

यहां पर मल्लिका अर्थात भगवान पार्वती और अर्जुन अर्थात भगवान शिव दोनों का सम्मिलित रूप मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में विद्यमान है।

Mallikarjuna jyotirlinga
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्र प्रदेश

महाभारत में दिए एक वर्णन के अनुसार श्रीशैलम पर्वत पर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का दर्शन और पूजन करने से एक अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश

मध्यप्रदेश के अत्यंत प्राचीन और महत्वपूर्ण शहर उज्जैन में भगवान शिव महाकाल के रूप में विद्यमान है। भगवान महाकाल को उज्जैन का राजा कहा जाता है। महाकाल मंदिर की भस्म आरती विश्व प्रसिद्ध है।

Mahakaleshwar Jyotirlinga
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश

ऐसा माना जाता है कि श्मशान घाट से लाई गई चिता की ताजी राख या भस्म से भगवान शंकर का अभिषेक होता है। यही उज्जैन में ही शिप्रा नदी के किनारे सिंहस्थ महाकुंभ का भी आयोजन किया जाता है।

साथ ही उज्जैन में स्थित सांदीपनि आश्रम का अलग ही महत्व है। यहां पर भगवान श्री कृष्ण और उनके भाई बलराम ने शिक्षा प्राप्त की थी।

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के मांधाता आईलैंड पर स्थित ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। यहां की अनेक विशेषताएं है, जैसे कि नर्मदा नदी यहां पर ओम के आकार में बहती है। इसीलिए से स्थान का नाम ओमकारेश्वर है।

Omkareshwar jyotirling
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश

ओमकारेश्वर वैसे तो अकेले 1 ज्योतिर्लिंग के रूप में गिना जाता है। परंतु इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भगवान शिव यहां पर दो रूपों में विद्यमान है। एक तो ओमकारेश्वर और दूसरे ममलेश्वर इसीलिए दो रूपों के दर्शन का फल एक साथ प्राप्त हो जाता है।

केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंड

उत्तरांचल के उत्तराखंड में हिमालय की घाटियों में स्थित केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक और चार धाम की यात्रा में से एक माना जाता है। यह पंच केदार में से भी एक है।

Kedarnath Jyotirling
केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंड

अत्यधिक ठंड और बर्फबारी के कारण यह मंदिर साल में 6 महीने अप्रैल से लेकर नवंबर तक ही खुलता है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में भगवान शिव स्वयं केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में विद्यमान है और बाहर नंदी की प्रतिमा है चारों धाम की यात्रा में केदारनाथ एक विशेष स्थान रखता है।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के सह्याद्री पर्वत की हरी-भरी वादियों के बीच स्थित भीम शंकर ज्योतिर्लिंग छठवें स्थान पर आता है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में स्थित 3 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

Shree Bhimashankar Jyotirling
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

यह मंदिर शिराधन गांव भीम नदी के उद्गम स्थल पर स्थित है। यहां पर स्थित शिवलिंग के मोटे होने के कारण इसे मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। भीमेश्वर ज्योतिर्लिंग अमोघ माना जाता है। अर्थात यहां आने वाले और दर्शन करने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज यहां पूजन करने आते थे।

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विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तर प्रदेश

विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद के काशी नगर में स्थित है। काशी के विषय में ऐसा कथन प्रचलित है कि तीनों लोगों में सबसे अलग नगरी काशी है और यह भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजमान नगर है।

Kashi Vishwanath Temple Jyotirlinga
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तर प्रदेश

गंगा नदी के किनारे बसे होने के कारण काशी को मुक्तिधाम कहा जाता है। विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में विभाजित है। ज्योतिर्लिंग के दाएं भाग में माता पार्वती और बाएं भाग में भगवान शिव विराजमान है।

त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के नासिक में पंचवटी से लगभग 18 मील की दूरी पर स्थित त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में एक गड्ढे मैं छोटे-छोटे 3 पिंड विद्यमान है, जिन्हें ब्रह्मा विष्णु और शंकर का प्रतीक माना जाता है।

Trimbakeshwar Jyotirling
त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

पौराणिक कथाओं की माने तो गौतम ऋषि और गोदावरी नदी ने भगवान शिव से प्रार्थना की थी कि वे यहां आकर बसे। इसीलिए भगवान शिव स्वयं तीन पिंडों के रूप में यहां प्रकट हुए। इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव यहां पर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्वयं प्रकट हुए थे। यानी यहां किसी ने इन्हें स्थापित नहीं किया।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, झारखंड

झारखंड राज्य के देवघर में स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग नौवें नंबर पर आता है। देवघर का मतलब देवताओं का घर होता है। अर्थात देवताओं के घर में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग विद्यमान है।

Baba Vaidyanath Jyotirlinga
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, झारखंड

ऐसी मान्यता है कि वैद्यनाथ धाम में माता सती का ह्रदय गिरा था, इसीलिए इसे एक शक्तिपीठ के रूप में भी पूजा जाता है। भक्तों की मनोकामना पूरी करने की वजह से इस ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, गुजरात

जामनगर जिले के द्वारका धाम से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा अपरंपार है। ऐसा माना जाता है कि भगवान द्वारिकाधीश यहां पर रुद्राभिषेक करते थे।

Nageshwar Jyotirlinga
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, गुजरात

यहां भगवान शिव को नागेश्वर नाम से जाना जाता है। नागेश्वर अर्थात नागों की ईश्वर और माता पार्वती को नागेश्वरी के रूप में जाना जाता है।

रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, तमिलनाडु

तमिलनाडु की रामनाथपुरम जिले में स्थित रामेश्वर ज्योतिर्लिंग चार धामों में विशेष महत्व रखता है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से तो एक है ही, साथ ही चार धाम की यात्रा में से एक धाम यही है। ऐसा कहा जाता है कि माता सीता ने इसे खुद अपने हाथों से बनाया था और भगवान राम ने इसका पूजन और अभिषेक किया था।

Rameshwaram Jyotirlinga
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, तमिलनाडु

भगवान राम के पूजन और स्थापना करने की वजह से इस स्थान को और मंदिर को रामेश्वर के नाम से जाना जाता है। रामेश्वर अर्थात राम के ईश्वर या राम के आराध्य भगवान शिव।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद के निकट दौलताबाद में स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में 12वें नंबर पर आता है। यह घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से भी प्रसिद्ध है।

Grishneshwar Jyotirlinga
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

इस मंदिर के पास एलोरा की गुफाएं भी स्थित है। एक भक्त घोषणा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव यहां प्रकट हुए थे, इसीलिए इस स्थान को घुश्मेश्वर नाम से जाना जाता है।

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12 ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई

ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति के संबंध में बहुत सारे मत है। पौराणिक कथाओं की माने तो एक बार सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु में इस बात को लेकर विवाद छिड़ गया कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है? तब भगवान शिव ने एक ज्योतिपुंज के स्तंभ रूप में प्रकट होकर पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशमान बना दिया। वास्तव में कोई नहीं जानता था कि अनंत आकाश तक जाने वाला यह प्रकाश पुंज कैसे आया?

भगवान ब्रह्मा और विष्णु भी तब अचंभित रह गए की उन्हें ना तो इस प्रकाशमान स्तंभ का ना आदि पता है और ना ही अंत।

एक और मत के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि एक बार रावण भगवान शिव को शिवलिंग स्वरूप में ले जा रहा था। बीच रास्ते में उसे लघुशंका के लिए जाना पड़ा और इस बीच उसने शिवलिंग को एक ग्वाले को देकर कहा कि इसे पकड़े रहना तब तक में आता हूं।

रावण को आने में थोड़ा समय लगा और उस ग्वाले ने वह शिवलिंग उसी स्थान पर रख दिया और शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया। ऐसा कहा जाता है कि वह ग्वाला कोई और नहीं भगवान विष्णु थे और उन्होंने ही ऐसी लीला रची थी।

कुछ और मतों की माने तो वैज्ञानिक युक्ति और धार्मिक संबंध को दर्शाता हुआ एक मत ऐसा भी है कि 12 प्रकाशमान पिंड पृथ्वी पर 12 जगहों पर गिरे, जिन्हें ज्योतिर्लिंग या प्रकाश स्तंभ के रूप में पूजा जाता है और सर्वमान्य मत यही है कि ज्योतिर्लिंग उन उन स्थानों पर बने हुए हैं।

इसके अतिरिक्त भारत के विभिन्न राज्यों में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों की उत्पत्ति से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं भी है और प्रत्येक ज्योतिर्लिंग से जुड़ी अलग-अलग कथा है।

हर एक ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में आगे हमने यहां पर बताया है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति

गुजरात के सोमनाथ में स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में पौराणिक कथा इस प्रकार है कि जब चंद्र देव का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के साथ हुआ तब वह उनकी नक्षत्र बन गई। लेकिन चंद्रदेव सिर्फ रोहिणी से ही ज्यादा प्यार करते थे, जिसके कारण अन्य नक्षत्र बहुत दुखी होने लगी और उन्होंने इसके बारे में अपने पिता को बताया।

दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव को सभी नक्षत्र से एक समान प्यार करने के लिए कहा लेकिन चंद्रदेव पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जिसके बाद अंत में दक्ष प्रजापति क्रोध में आकर उन्हें क्षयग्रस्त होने का श्राप दे दिया। इस रोग से मुक्त होने के लिए चंद्रदेव ब्रह्मा जी के पास जाते हैं और वे उन्हें भगवान शिव की आराधना करने के लिए कहते हैं।

चंद्रदेव 10 करोड़ बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हैं, जिससे शिव जी प्रसन्न होते हैं और उन्हें श्राप मुक्त करते हैं। जिसके बाद चंद्र देव भगवान शिव जी को यहीं पर मां पार्वती के साथ सदा के लिए निवास करने की प्रार्थना करते हैं तो भगवान शिवजी ज्योतिर्लिंग के रूप में यंही स्थापित हो जाते हैं।

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति को लेकर पौराणिक कथा इस प्रकार है कि एक बार भगवान गणेश और कार्तिकेय सबसे पहले विवाह करने के लिए झगड़ने लगते हैं। तब मां पार्वती उन्हें कहती है कि जो सबसे पहले पृथ्वी का चक्कर लगाकर वापस लौटेगा, उसी का सबसे पहले विवाह होगा।

कार्तिकेय शर्त को पूरा करने के लिए तुरंत अपने वाहन मयूर पर बैठकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़ते हैं। लेकिन इधर विशालकाय शरीर और छोटा वाहन चूहा होने के कारण भगवान गणेश चिंतित हो जाते हैं।

लेकिन तीक्ष्ण दिमाग होने के कारण भगवान गणेश मां पार्वती और शिव जी की ही परिक्रमा करते हैं और कहते हैं कि पूरी सृष्टि माता पिता के चरणों में ही है। इससे प्रसन्न होकर मां पार्वती भगवान गणेश की सर्वप्रथम रिद्धि सिद्धि से विवाह करवा देती है। जब कार्तिकेय वापस लौटते हैं तो यह देख बहुत क्रोधित होते हैं और क्रोध में आकर क्रौंच पर्वत पर चले जाते हैं।

वहां उन्हें मनाने के लिए मां पार्वती जाती है और भगवान शंकर जी भी वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होते हैं। चूंकि भगवान शिव जी का एक नाम अर्जुन एवं मां पार्वती का एक नाम मल्लिका है, जिसके कारण यह ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन के नाम से प्रख्यात होता है।

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से संबंधित पौराणिक कथा यह है कि भगवान शिव के एक परम भक्त राजा चंद्रसेन को भगवान शिव जी की पूजा आराधना करते हुए देख एक बालक जिसका नाम श्रीकरृण था, वह भगवान शिवजी की पूजा आराधना करने के लिए कौतूहल हो उठा और उसने सभी सामग्रियों को जुटाया।

लेकिन शिवलिंग प्राप्त न होने के कारण उसने एक पत्थर के टुकड़े को ही के शिवलिंग के रूप में पूजा करने लगा। भगवान शिव जी के शिवलिंग की पूजा करने में इस कदर मगन हो गया कि उसकी मां ने उसे खाना खाने के लिए बुलाया तो वह गया ही नहीं जिसके कारण मां क्रोध में आकर उस पत्थर को फेंक देती है।

जिसके बाद बालक रोते-रोते बेहोश हो जाता है। भगवान शिव जी के प्रति उसकी अनन्य भक्ति देव भगवान शिव जी प्रसन्न होते हैं और उसके बाद जब बालक का आंख खुलता है तो वह देखता है कि उसके सामने एक बहुत ही भव्य विशाल, स्वर्ण और रत्नों से जड़ा मंदिर खड़ा होता है, जिसके अंदर प्रकाश पूर्ण और तेजस्वी ज्योतिर्लिंग स्थापित रहता है। यह ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के नाम से विख्यात होता है।

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श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति को लेकर प्रचलित पौरानीक कथा इस प्रकार है कि एक बार राजा मान्धाता नर्मदा नदी के किनारे विंध्य पर्वत पर भगवान शिव जी के घोर तपस्या करते हैं। उनके 6 महीनों की कठिन तपस्या को देख भगवान शिव जी प्रसन्न होते हैं और उन्हें दर्शन देकर उनसे वर मांगने के लिए कहते हैं।

तब राजा सहित अन्य कई ऋषि मुनि भगवान शिवजी से इसी स्थान पर निवास करने का आग्रह करते हैं। तब भगवान शिव जी ज्योतिर्लिंग के स्वरूप में सदा के लिए यहां पर स्थापित हो जाते हैं। यह ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से देश भर में प्रख्यात हो जाता है।

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति को लेकर पौराणिक कथा इस प्रकार है कि महा तपस्वी नर और नारायण कई वर्षों तक केदार नामक ऊंची शिखर पर भगवान शिव जी की कठिन तपस्या करते हैं।

उनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव जी उन्हें दर्शन देते हैं और उनसे वर मांगने के लिए कहते हैं। तब दोनों ऋषि मुनि भगवान शिव जी को उनके स्वरूप को यहां पर सदा के लिए मनुष्य के कल्याण और उनके उद्धार के लिए स्थापित करने की प्रार्थना करते हैं।

तब भगवान शिव जी ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां पर निवास करने लगते हैं और उनका ज्योतिर्लिंग केदारनाथ के नाम से विख्यात होता है।

श्री भीमेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति

भीमेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति को लेकर पौराणिक कथा यह है कि प्राचीन समय में रावण का छोटा भाई कुंभकरण का एक पुत्र था, जिसका नाम भीम हुआ करता था। वह एक प्रतापी राक्षस था।

उसने एक बार राजा सुदक्षिण पर आक्रमण किया और उसे उसके मंत्रियों और अनुचरों सहित बंदी बना लिया। इधर राजा सचदक्षिण बंदी गृह में भी भगवान शिव का ध्यान करते हुए उनके पार्थिव शिवलिंग की पूजा अर्चना करने लगा।

उसे भगवान शिवजी की पूजा अर्चना करते देख राक्षस भीम ने शिवलिंग पर तलवार से प्रहार किया, जिसके कारण शिवलिंग से भगवान शिव जी प्रकट हुए और अपने हुंकार मात्र से राक्षस भीम को जलाकर भस्म कर दिया।

सभी ऋषि मुनि और देवगन भगवान शिवजी की स्तुति करने लगे और उन्हें वहीं पर सदा के लिए लोक कल्याण के उद्देश्य से निवास करने के लिए आग्रह किया। भगवान शिव जी यहीं पर सदा के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करने लगे। इस तरह उनका ज्योतिर्लिंग भीमेश्वर के नाम से प्रख्यात हुआ।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति के बारे में प्रचलित पौराणिक कथा यह है कि सुप्रिया नामक एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी व्यक्ति था, जो भगवान शिवजी का अनन्य भक्त हुआ करता था।

लेकिन दारुक नामक एक राक्षस उसके इस भक्ति से बहुत ही क्रोधित था, जिसके कारण मौका देखते हुए वह एक बार नौका पर सवार सुप्रिया और अन्य यात्रियों पर हमला करता है और उन्हें पकड़कर कारागार में डाल देता है।

लेकिन सुप्रिया कारागार में रहते हुए भी भगवान शिव जी की नियमित पूजा आराधना करता है और यहां से सभी यात्रियों की मुक्ति के लिए प्रार्थना करता हैं। तब भगवान शिवजी उसके पूजा आराधना से प्रसन्न होकर एक चमकते हुए सिंहासन पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होते हैं और उसे पशुपति अस्त्र देखकर राक्षस दारू का वध करने का आदेश देते हैं।

इस तरह सुप्रिया, राक्षस दारू के कैद से मुक्त हो जाता है और शिवधाम चला जाता है और यहां पर भगवान शिव जी का नागेश्वर नाम से ज्योतिर्लिंग स्थापित हो जाता है।

श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति

रामेश्वर ज्योतिर्लिंग के उत्पत्ति को लेकर प्रचलित पुरानी कथा इस प्रकार है कि जब भगवान राम जी माता सीता एवं वानर सेना के साथ लंका विजय करने के बाद  वापस लौटते हैं। तब उस वक्त एक ब्राह्मण (रावण) की हत्या के लिए पाप मुक्त होने के लिए भगवान शिव जी की पूजा करना चाहते हैं।

उस समय कोई भी शिवलिंग उनके पास ना होने के कारण मां सीता भगवान राम जी के लिए खुद ही समुद्र के बालू से एक शिवलिंग का निर्माण करती है और तब भगवान राम जी शिवलिंग की पूजा करते हैं। इस तरह इस शिवलिंग का नाम भगवान राम के नाम से रामेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विख्यात होता है।

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श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिगा की उत्पत्ति

भगवान शिव जी और मां पार्वती जी के विवाह के पश्चात मां पार्वती अपने पिता के घर ही रहने लगी थी और भगवान शिव जी कैलाश में रह रहे थे। लेकिन मां पार्वती को अपने पिता के यहां रहना सही नहीं लग रहा था, जिसके कारण भगवान शिव जी को अपने साथ कैलाश ले जाने के लिए आग्रह करती है।

तब भगवान शिव जी मां पार्वती को साथ लेकर अपने पवित्र नगरी काशी आ जाते हैं और यहीं पर विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो जाते हैं।

श्री त्रिंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति व इसका महत्व

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति को लेकर कहा जाता है कि प्राचीन समय में महा ऋषि गौतम जी के तपोवन में रहने वाली ब्राह्मणों की पत्नियां ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या से नाराज हो जाती है।

जिसके कारण वह अपने-अपने पतियों को ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकालने के लिए प्रेरित करती है। तब सभी ऋषि मिलकर ऋषि गौतम से छल पूर्वक गौ का हत्या करवा देते हैं और उन पर गौ हत्या का झूठा आरोप लगा देते हैं और उन्हें आश्रम से निकाल देते हैं।

लेकिन बाद में गौ हत्या का पाप धोने के लिए सलाह देते हैं कि वे तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करें फिर 1 महीने तक व्रत रखें, ब्रह्मगिरि की एक परिक्रमा करें, उसके बाद गंगा जी के जल को लाकर जल से स्नान करें, एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग से शिवजी की आराधना करें और फिर से गंगा जी में स्नान करें और फिर ब्रम्हगिरी कि 11 बार परिक्रमा करें और फिर 100 घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंग को स्नान करें। तब गौ हत्या के पाप से मुक्त होंगे।

सभी ब्राह्मणों की बात सुनकर गौतम जी ऐसे ही करते हैं। भगवान शिव जी शिवलिंग की पूजा आराधना करते हैं। भगवान शिव जी उनसे प्रसन्न होते हैं और दर्शन देते हुए उन्हें एक वर मांगने के लिए कहते हैं।

ऋषि गौतम अपने आपको गौ हत्या के पाप से मुक्त करने का आशीर्वाद मांगते हैं। इसके साथ ही सदा के लिए यहां पर निवास करने का भी आशीर्वाद मांगते हैं। इसके साथ ही हमेशा के लिए इसी स्थान पर लोक कल्याण के लिए निवास करने के लिए आग्रह करते हैं।

तब त्रिंबकेश्वर के नाम से भगवान शिव जी का ज्योतिर्लिंग यंहा स्थापित हो जाता है और ऋषि गौतम के द्वारा लाया गया गंगा जी का जल पास में ही गोदावरी के नाम से प्रवाहित होने लगती है।

श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति व इसका महत्व

श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति को लेकर प्रचलित पौराणिक कथा यह है कि एक बार रावण भगवान शिव जी के दर्शन के लिए घोर तपस्या करता है। तब भगवान शिव जी उनके तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन देते हैं और एक वर मांगने के लिए कहते हैं। तब रावण भगवान शिव जी को सदा के लिए लंका में रहने को कहते हैं।

भगवान शिव जी उन्हें अपना ही स्वरूप शिवलिंग प्रदान करते हैं और शर्त रखते हैं कि यह शिवलिंग अगर कहीं भी बीच राह में जमीन पर रखा तो वह वहीं पर स्थापित हो जाएगा।

रावण भगवान शिव जी के शिवलिंग को लंका ले जा रहा होता है कि उसे बीच उन्हें लघुशंका होती है, जिसके कारण वह उस शिवलिंग को बैजू नाम के एक अहिर के हाथ में थमा जाते हैं।

लेकिन रावण की लघु शंका रुक ही नहीं रही थी, जिसके कारण काफी ज्यादा समय लग जाता है। इधर ग्वाला बैजू क्रोध में आकर शिवलिंग को वहीं जमीन पर ही रख कर चला जाता है।

जब रावण वापस लोटता है तो शिवलिंग को उठाने की बहुत प्रयत्न करता है लेकिन शिवलिंग जमीन से उठता ही नहीं है। जिसके बाद हार के रावण अपने अंगूठे का निशान शिवलिंग पर लगाकर लंका चला जाता है।

इस तरह तब से ही वहां पर भगवान शिव जी की ज्योतिर्लिंग स्थापित हो जाती है और बैजू ग्वावे के नाम पर वैद्यनाथ के नाम से प्रचलित हो जाता है।

श्री घृश्नेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति

घृश्नेश्वर ज्योतिर्लिंग के उत्पत्ति को लेकर एक बहुत ही प्रचलित पौराणिक कथा इस प्रकार है कि दक्षिणी देश में देव गिरी पर्वत के निकट सुधर्मा नामक एक तपस्वी ब्राह्मण रहा करता था। उसकी एक पत्नी थी, जिसका नाम सुदेहा था।

दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे। लेकिन शादी के कई वर्षों पश्चात उन्हें कोई संतान नहीं हुआ। जब सभी उम्मीद खत्म हो गई तब सूर्या ने अपने पति से अपनी छोटी बहन घुश्मा से विवाह करने के लिए आग्रह किया।

तब सुधर्मा और घुश्मा का विवाह हुआ। घुश्मा भगवान शिव जी की परम भक्त थी वह हर दिन 101 पार्थविक शिवलिंग बनाकर भगवान शिव जी की सच्ची निष्ठा से पूजा किया करती थी।

1 वर्ष पश्चात भगवान शिव जी के कृपा से घुश्मा को बहुत ही सुंदर और स्वस्थ बालक प्राप्त हुआ।

बालक धीरे-धीरे जवान हुआ लेकिन तब तक उसकी बड़ी बहन सुदेहा के मन में कुविचार के वृक्ष उत्पन्न हो चुके थे, जिसके कारण ईर्ष्या में आकर वह एक रात घुश्मा के पुत्र को सोते हुए मार डालती हैं।

उसे उसी नदी में जाकर फेंक देती है, जहां पर घुश्मा प्रतिदिन पार्थिक शिवलिंग का विसर्जन करती थी। सुबह सबको इसके बारे में पता चलता है लेकिन उसके बावजूद घुश्मा सच्चे निष्ठा से भगवान शिव की पूजा करने में तल्लीन रहती है।

तब भगवान अपनी कृपा दृष्टि दिखाते हुए उसके पुत्र को जीवित कर देते हैं और उसका पुत्र नदी से बाहर निकलता है। भगवान शिव जी घुश्मा के सामने प्रकट होते हैं और उसे एक वर मांगने के लिए कहते हैं।

तब घुश्मा कहती है कि आपने मेरे पुत्र को जीवित कर दिया यही मेरे लिए सबसे बड़ा वर है। इसके अतिरिक्त में चाहती हूं कि आप सदा ही लोक कल्याण के लिए इसी स्थान पर निवास करे। तब से ही घूश्मेश्वर महादेव के नाम से यहां पर यह ज्योतिर्लिंग का निर्माण हुआ है।

12 ज्योतिर्लिंग के नाम और फोटो

यहां पर सभी ज्योतिर्लिंग नाम और स्थान देख सकते हैं:

निष्कर्ष

भगवान शिव को मानने वालों और सभी धर्मावलंबियों के लिए 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व होता है। भगवान शिव को मानने और पूजन करने वाले केवल आज के समय में ही नहीं बल्कि प्राचीन काल से ही लोग भगवान शिव की शिवलिंग के रूप में पूजा करते आ रहे हैं।

जितना पुराना इतिहास भारतवर्ष का है, उतना ही पुराना इतिहास शिवलिंग पूजा का भी है। शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग और स्वयं भगवान शिव सृष्टि के आरंभ और अंत दोनों के प्रतीक माने जाते हैं।

इस आर्टिकल में हमने भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम और स्थान (12 jyotirlingon ke naam), महत्व, उत्पत्ति आदि से संबंधित सारे तथ्यों पर प्रकाश डालने की कोशिश की है। आशा है आप को इस लेख से ज्योतिर्लिंग और उनके नाम एवं उनकी जगह से संबंधित सारी जानकारी प्राप्त हो गई होगी। इसे आगे शेयर जरुर करें।

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