इस लेख में मीनाक्षी मंदिर क्यों प्रसिद्ध है, meenakshi mandir kahan hai, इसकी पौराणिक कथा और इसका इतिहास क्या है आदि के बारे में जानेंगे।
मदुरै शहर भारत के तमिलनाडु राज्य का एक प्रसिद्ध नगर है, जहां पर स्थित है ऐतिहासिक मंदिर। Meenakshi Mandir भगवान शिव (सुंदरेश्वर) और उनकी पत्नी देवी पार्वती (मीनाक्षी) को समर्पित है। यह मंदिर पूरे देश भर में प्रसिद्ध है, जिसका दर्शन करने के लिए देश दुनिया से लोग आते हैं। मंदिर की वास्तुकला, इसका इतिहास श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है।
मीनाक्षी मंदिर (Meenakshi Amman Temple)
मंदिर का नाम | मीनाक्षी मंदिर |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म से सम्बंधित |
किस देवता का है | शिव (सुन्दरेश्वरर) एवं पार्वती (मीनाक्षी) |
मीनाक्षी मंदिर कहाँ है | मदुरई (तमिल नाडु) |
स्थापना कब हुई | 17वीं शताब्दी |
मीनाक्षी मंदिर किसने बनवाया | पाण्ड्या राजा |
मीनाक्षी मंदिर किस शैली में बना है | दक्षिण भारतीय स्थापत्यकला |
जाने का सही समय | अक्टूबर से मार्च |
मंदिर खुलने का समय/मीनाक्षी मंदिर दर्शन समय | प्रातः 05:00 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक, सायं 04:00 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक |
रेलवे स्टेशन की दूरी | 2 किलोमीटर (मदुरै जंक्शन रेलवे स्टेशन) |
नजदीकी एयरपोर्ट | मदुरै हवाई अड्डा (12 किलोमीटर) |
ड्रेस कोड | पारंपरिक भारतीय पोशाक |
मीनाक्षी मंदिर क्यों प्रसिद्ध है
मीनाक्षी मंदिर की पौराणिक कथा भगवान शिव और मां पार्वती से जुड़ा हुआ है। प्राचीन काल में मदुरई में राजा मलयध्वज पांड्या का शासन हुआ करता था। राजा निसंतान था। बहुत यज्ञ तपस्या करने के बाद निसंतान राजा को एक पुत्री की प्राप्ति हुई और ताजूब की बात यह है कि वह पुत्री पैदा होने के समय ही 3 वर्ष की थी। इतना ही नहीं उसके तीन स्तन थे।
कहते हैं कि स्वयं भगवान शिव ने ही राजा को सपने में कहा था कि जब उनकी बेटी को उसके काबिल वर मिल जाएगा तब उसका तीसरा स्तन नीचे गिर जाएगा। राजा की पुत्री का नाम तडातगै था, जो कालांतर में मीनाक्षी के नाम से प्रसिद्ध हुई। मीनाक्षी का अर्थ होता है, जिसकी आंखें मीन यानी कि मछली के आकार की हो।
चूंकि राजा का कोई पुत्र नहीं था, इसीलिए राजा ने अपनी पुत्री को ही अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया। राजकुमारी पूरे विश्व पर विजय पाना चाहती थी। वह दक्षिण से शुरू करते हुए उत्तर भारत की ओर आगे बढ़ी।
रास्ते में रानी ने कई राजाओं को यहां तक की देवताओं, उनके गण, भगवान शिव की सवारी नंदी सबको हरा दिया। तब जाकर उसका सामना बैरागी का भेष धारण किए हुए एक युवा संन्यासी से हुआ। जब उनसे उसकी नजर मिली तो मीनाक्षी का तीसरा स्तन स्वत: गायब हो गया, जिससे उसे पता चला कि वही सन्यासी उसका वर होगा।
वह सन्यासी कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव थे। जब भगवान शिव से मीनाक्षी की आंखें मिली तब उन्हें मालूम पड़ा कि वह पिछले जन्म में मां पार्वती थी और फिर वे दोनों वापस मदुरई लौट आए, जहां पर उनका विवाह हुआ।
भगवान शिव वहां पर सुंदरेश्वर के नाम से जाने जाते हैं। कहते हैं उस विवाह में पूरे विश्व का हर जीव वहां पर एकत्रित हुआ था। भगवान शिव का विवाह संचालन करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु बैकुंठ धाम से आए थे। लेकिन रास्ते में इंद्र भगवान के कारण उन्हें विलंब हो गया, जिस कारण विवाह का संचालन स्थानीय देवता कूडल अझगर ने किया।
इस बात से भगवान विष्णु बहुत क्रोधित हुए और वह मदुरै शहर में कभी ना आने की प्रतिज्ञा ले ली और नगर की सीमा से लगे पर्वत अलगार कोइल में जाकर बस गए। बाद में जब सभी देवताओं ने उन्हें समझाया और मनाया तब जाकर वे आए और मीनाक्षी-सुंदरेश्वर का पानीग्रहण कराया।
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मीनाक्षी मंदिर के निर्माण का इतिहास
मीनाक्षी मंदिर के निर्माण का इतिहास लगभग 800-900 साल पुराना है। कहा जाता है कि इस स्थान पर स्वयंभू शिवलिंग उत्पन्न हुआ था, जहां पर भगवान इंद्र ने एक गोपुरम की स्थापना की थी और फिर वहां पर देवता गग शिव की पूजा करने आने लगे। बाद में एक सामान्य नागरिक के कहने पर राजा कुलशेखर पांड्या ने वहां पर एक मंदिर का निर्माण करवाया। लगभग सौ सवा वर्ष यह मंदिर सही स्थिति में था।
लेकिन दिल्ली सल्तनत का समय आने के बाद सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मालिक काफूर ने इस शहर पर चढ़ाई की और इस मंदिर को भी ध्वस्त कर दिया। बाद में मदुरई के ही राजाओं ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया।
मीनाक्षी मंदिर फोटो
मीनाक्षी मंदिर की वास्तुकला
- Meenakshi Amman Temple भव्य गोपुरम और उस पर अंकित भव्य मूर्तियां के कारण बेहद ही सुंदर लगता है।
- इस मंदिर में 14 प्रवेश द्वार है। मंदिर का ऊंचा प्रवेश द्वार है दक्षिण गोपुरम, जो कि 16 मंजीले इमारत के बराबर है। मंदिर के गोपुरम और मंदिर के दीवारों पर कुल मिलाकर 32000 मूर्तियां अंकित है।
- मंदिर में 985 स्तंभ है, जिसमें से 15 स्तंभ में दो मंदिर बने हुए हैं। यहां पर प्रत्येक स्तंभ पर सुंदर शिल्पकार की गई है।
- इस मंदिर के स्तंभ मंडप के दक्षिण में कल्याण मंडप स्थित है। हर साल चैत्र मास में यहां पर चितिरइ उत्सव मनाया जाता है, जिसमें शिव पार्वती का विवाह आयोजित होता है।
- मंदिर के गर्भ ग्रह में मीनाक्षी और मां पार्वती के अवतार की प्रतिमा है, जिनमें एक हाथ में तोता है और दूसरे हाथ में तलवार है, जो उनके रानी होने का प्रतीक है।
- मंदिर की दीवार पर भगवान विष्णु के द्वारा मीनाक्षी और सुंदरेश्वर का किया गया पानीग्रहण का खूबसूरत चित्र अंकित है।
निष्कर्ष
यहां पर मीनाक्षी मंदिर क्यों प्रसिद्ध है के बारे में जानने के साथ ही meenakshi mandir kahan hai, मीनाक्षी मंदिर के निर्माण का इतिहास, मीनाक्षी मंदिर की वास्तुकला आदि के बारे में विस्तार से जाना है।
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